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कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों को सुरक्षित रखने को अभी से करें तैयारियां

– बाल गृहों के बच्चों को कोरोना से सुरक्षित बनाने पर मंथन
– बाल गृहों के कर्मचारियों को बच्चों में कोरोना के लक्षणों व बचाव पर दिए टिप्स
– महिला एवं बाल विकास के तहत प्रदेश में संचालित हो रहे 180 बाल गृह
– प्रदेश के बाल गृहों में रह रहे 18 साल तक के करीब सात हजार बच्चे

बस्ती। महिला एवं बाल विकास विभाग के तहत प्रदेश में संचालित 180 बाल गृहों में रह रहे सात हजार से ज्यादा बच्चों को कोरोना से सुरक्षित बनाने को लेकर विभागीय कोविड वर्चुअल ग्रुप के अधिकारियों और विशेषज्ञों ने विचार-विमर्श किया। बच्चों में कोरोना के लक्षणों और बचाव के तरीकों पर विषय विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी। बाल गृहों के कर्मचारियों के क्षमतावर्धन के लिए कोविड वर्चुअल ग्रुप द्वारा आयोजित वेबिनार में बाल गृहों की व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त बनाने की जरूरत पर जोर दिया गया। जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ. एफ हुसैन के साथ ही स्वास्थ्य विभाग के अन्य अधिकारी व स्टॉफ, यूनिसेफ के डीएमसी आलोक राय ने प्रतिभाग किया।
एसजीपीजीआई, लखनऊ की वरिष्ठ कंसलटेंट पीडियाट्रिशियन डॉ. पियाली भट्टाचार्य ने कहा कि इस समय बच्चों में कोई भी नए लक्षण नजर आएं तो उनको नजरंदाज न करें। बच्चों में डायरिया, उल्टी-दश्त, सर्दी, जुकाम, बुखार, खांसी, आंखें लाल होना या सिर व शरीर में दर्द होना, सांसों का तेज चलना आदि कोरोना के लक्षण हो सकते हैं। बच्चे को होम आइसोलेशन में रखें किन्तु बच्चा यदि पहले से अन्य बीमारियों की चपेट में रहा है और कोरोना के भी लक्षण नजर आते हैं तो उसे चिकित्सक के संपर्क में रखें।
बाल गृह के बच्चों का तैयार हो हेल्थ चार्ट-
डॉ. पियाली ने बाल गृह में रह रहे बच्चों का हेल्थ चार्ट बनाने पर जोर दिया और कहा कि यह चार्ट हर बाल गृह अपने पास रखें, और उसको नियमित रूप से भरते रहें। उसमें बुखार, पल्स रेट, आक्सीजन सेचुरेशन, खांसी, दस्त आदि का जिक्र है, जिससे पता चलता रहेगा कि बच्चे को कब आइसोलेट करने की जरूरत है या कब अस्पताल ले जाना है । बच्चा ज्यादा रोये, गुस्सा करे या गुमशुम रहे तो उस पर भी नजर रखनी है। उसके काउंसिलिंग की जरूरत है। बाल गृहों में काउंसलर की अहम् भूमिका है, उनके प्यार-दुलार या समझाने के तरीके से ही बच्चे की बहुत सी बीमारियां दूर हो जाती हैं।
प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनाने पर दें ध्यान-
डॉ. पियाली ने कहा कि बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, इसलिए उनके खाद्य पदार्थों में हरी साग-सब्जी, दाल, मौसमी फल जैसे तरबूज, खरबूज, नींबू, संतरा आदि को जरूर शामिल करें, ताकि शरीर में रोग से लड़ने की ताकत पैदा हो सके। इसके अलावा हाई प्रोटीन का भी ख्याल रखें। बच्चे को पनीर, मठ्ठा, छाछ, गुड़, चना आदि दिया जा सकता है। मांसाहारी को अंडा, मछली आदि दिया जा सकता है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि बच्चा मोटा है तो उसको कोविड नहीं होगा, ऐसे बच्चों में भी संक्रमण हो रहा है। इसलिए अंदर से मजबूत होना ज्यादा जरूरी है।
तीसरी लहर बच्चों को कर सकती है प्रभावित-
डॉ. पियाली ने कहा कि जैसी की चर्चा में है कि कोरोना की तीसरी लहर भी आ सकती है जो बच्चों को ज्यादा प्रभावित कर सकती है, उस लिहाज से भी अभी वक्त है कि बच्चों में मॉस्क लगाने, सोशल डिस्टेंसिंग और हैंडवाश की आदत डाली जाए, क्योंकि तीसरी लहर सितम्बर-अक्टूबर में आने की बात कही जा रही है। उन्होंने कहा कि सेनेटाइजर की जगह साबुन-पानी से हाथ धोने पर जोर देना चाहिए, क्योंकि यह सेनेटाइजर की तुलना में ज्यादा उपयोगी है। उन्होंने कहा कि यदि तीसरी लहर आती भी है तो बच्चे इस कारण से भी ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं क्योंकि 18 साल से ऊपर वालों का ही अभी टीकाकरण किया जा रहा है, उसके नीचे वालों के लिए तो अभी कोई टीका भी नहीं है।
निदेशक, महिला कल्याण मनोज कुमार राय ने कहा कि कोविड-19 को देखते हुए बाल गृहों में रह रहे बच्चों को पहले से ही विभिन्न आयु वर्ग में विभाजित कर उनके स्वास्थ्य की देखभाल की जा रही है। श्री राय ने कहा कि प्रदेश में वर्तमान में 180 बाल गृह संचालित हो रहे हैं, जिनमें 18 साल तक के करीब 7000 बच्चे रह रहे हैं।
वेबिनार में जिला प्रोबेशन अधिकारी, बाल गृह के अधीक्षक, केयर टेकर, काउंसलर, नर्सिंग स्टॉफ के अलावा सेंटर फार एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) व अन्य संस्थाओं के प्रतिनिधि शामिल हुए।