’मछली पालन’’ मे रोजगार की अपार संभावनांए
कबीर बस्ती न्यूजः
बस्ती : आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र बस्ती द्वारा क्षमता योजनान्तर्गत ‘‘मिश्रित मत्स्य पालन’’ विषय पर ग्राम माझा में व्यवसायिक प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। प्रशिक्षणार्थियों को सम्बोधित करते हुए केन्द्राध्यक्ष, प्रो0 एस0एन0 सिंह ने बताया कि एकीकृत फसल प्रणाली (इन्टीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम) के प्रमुख घटक मछली पालन, पशुपालन आदि को खेती के साथ समावेश करके बेरोजगार नवयुवकों को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कुलपति, डा0 बिजेन्द्र सिंह एवं निदेशक प्रसार, प्रो0 ए0पी0 राव के दिशा निर्देश में प्रशिक्षण आयोजित किये जा रहे है।
उन्होने बताया कि जनपद में अनेक जलश्रोत उपलब्ध है, ये जलश्रोत मत्स्य जैव विविधता एवं निरन्तर बढती हुई जनसंख्या को मछली के रूप में उन्नत प्रोटीन उपलब्ध कराने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इन जलश्रोतों में भारतीय कार्प मछलियॉ रोहू, भाकुर, नैन एवं विदेशी कार्प मछलियॉ सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प, कामन कार्प को एक ही तालाब में पालकर जलश्रोत का समुचित उपयोग कर सकते है। साथ ही साथ आज के आधुनिक सघन मछली पालन में जल्दी बढवार वाली पंगगेसियस का पालन करके भी आय अर्जित कर रहे है। उन्होने कहा कि एकीकृत मत्स्य पालन के तहत मुर्गी, बत्तख, गाय, बकरी, धान, बागवानी के साथ मछली पालन भी किया जा सकता है, जिसे नवयुवक रोजगार एवं आय के लिए अपना सकते है।
पशुपालन विशेषज्ञ, डा0 डी0के0 श्रीवास्तव ने बताया कि मछली पालन हेतु काली चिकनी मिट्टी, सिल्क युक्त काली मिट्टी, दोमटयुक्त चिकनी मिट्टी, तालाब के निर्माण हेतु उपयुक्त होती है। तालाब का आकार आयताकार एवं लम्बाई पूर्व से पश्चिम की ओर होना चाहिए। सफल मछली पालन हेतु तालाब की तैयारी आवश्यक है। यदि पुराना तालाब है, तो उसे 2-4 वर्ष के अन्तराल पर सुखाना, अवांछित मछलियॉ (कवई, पावदा, टेंगर, पढन आदि) एवं जलीय खर-पतवारों का निष्कासन आवश्यक है। इन मछलियों के निष्कासन हेतु 25-30 कु0/हे0 की दर से महुवा की खली का प्रयोग करते है। तालाब में संचयन के लिए तेजी से बढने वाली मछलियों की प्रजातियों का चयन करते है।
उन्होने बताया कि एक हेक्टेअर के तालाब में 10,000 मत्स्य अंगुलिकाओं को (कतला 20 प्रतिशत, रोहू 30 प्रतिशत, नैन 15 प्रतिशत, सिल्वर कार्प 10 प्रतिशत, ग्रास कार्प 10 प्रतिशत एवं कामन कार्प 15 प्रतिशत) संचय करते है, जिससे तालाब के सम्पूर्ण जल क्षेत्र का उपयोग हो जाता है तथा मछलियों की भी बढवार अच्छी होती है। मछलियों का पूरक आहार प्लवक है। इसके अतिरिक्त मछलियों की अच्छी बढवार हेतु परिपूरक आहार के रूप में मछलियों के वजन का 5-6 प्रतिशत आहार देते है। इसमें राइस पालिस 40 प्रतिशत, सरसों की खली 40 प्रतिशत, सोयाबीन मील 18 प्रतिशत, खनिज लवण मिश्रण 2 प्रतिशत को मिलाकर स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों से संतुलित आहार तैयार कर सकते है। ग्रास कार्प मछलियों के बढवार हेतु बरसीम, जई, हाईब्रिड नैपियर आदि हरे चारे का भी प्रयोग तालाब में करते है।
पौध रोग विशेषज्ञ डा0 प्रेम शंकर ने बताया कि यदि तालाब की सफाई, चूना आदि की व्यवस्था सही प्रकार से होती रहे, तो मछलियों में बीमारी की सम्भावना कम ही रहती है। मछलियों के शरीर पर वाह्य परजीवियों के लग जाने से घाव बन जाते है। इसकी रोकथाम हेतु तालाब में 3-5 किग्रा/हे0 पोटैशियम परमैगनेट का प्रयोग करते है। मछलियों में गिलराट की समस्या होने पर गलफडें (गिल) सड जाते है। इसके इलाज के लिए मछलियों को एण्टीब्राइन के घोल में स्नान कराना चाहिए तथा तालाब में पानी की निकासी करके ताजा पानी भरवाना चाहिए।
डा0बी0वी0 सिंह ने बताया कि तालाब की उर्वराशक्ति बढाने एवं रोग मुक्त रखने हेतु चूना 200-250 किग्रा/हे0, गोबर की खाद 25-30 कु0/हे0 की दर से मछलियों के संचय से पूर्व डालते है। साधारणतयः कच्चे गोबर को तालाब में डालने के 12-13 दिन बाद 20 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट, 25 किग्रा यूरिया एवं 4 किग्रा एम.ओ.पी. प्रति हे0 प्रति माह प्रयोग करते है। जैविक एवं रासायनिक खादों के प्रयोग के 10-12 दिन बाद तालाब का पानी हल्का भूरा दिखायी देने लगता है, जो कि प्राकृतिक आहार की पर्याप्त मात्रा को दर्शाता है, जिसका प्रयोग मछलियॉ भोजन के रूप में प्रयोग करके जल्दी बढवार हासिल कर लेती है।
हरिओम मिश्रा वि.ब.वि. (एग्रोनामी), ने बताया कि तालाब में ग्रास कार्प मछलियों का पालन अवश्य करना चाहिए क्योंकि इनकी बढ़वार भी तेज होती है। साथ ही साथ बाजार में मांग भी ज्यादा है और विक्रय मूल्य भी अच्छा मिलता है। इसलिए इन मछलियों के बढ़वार हेतु वर्ष भर हरा चारा की व्यवस्था करना अति आवश्यक है। इसे खरीफ, रबी तथा जायद मौसम में मक्का, ज्वार, बाजरा, बरसीम, जई आदि बहुवर्षीय हरा चारा हाइब्रिड नेपियर को उग़ा सकते हैं। साथ ही साथ सहजन के पौध भी बंधे पर रोप सकते हैं।
डॉ. अंजली वर्मा, गृह वैज्ञानिक ने मछलियों से प्राप्त होने वाले पोषक तत्वों पर चर्चा करते हुए कहा कि मछलियों के विभिन्न उत्पाद जैसे कटलेट, फिश फ्राई, पकौड़ा आदि तैयार कर बाजारों में बेचकर अतिरिक्त आय अर्जित की जा सकती हैं। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रगतिशील कृषक तथा कर्मचारी निखिल सिंह, जेपी शुक्ला प्रहलाद सिंह आदि मौजूद रहें।