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भारत में होम्योपैथी के बढ़ते कदम -डा. वी.के. वर्मा

हैनीमेन जयन्ती 10 अप्रैल पर विशेष

कबीर बस्ती न्यूज:

होम्योपैथी से तो सभी परिचित हैं, लेकिन सवाल यह है कि हम होम्योपैथी को जानते कितना हैं। होम्योपैथी चिकित्सा की शुरुआत 1796 में सैमुअल हैनीमैन द्वाराजर्मनी से हुई। आज यह अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी में काफी मशहूर है, लेकिन भारत इसमें वर्ल्ड लीडर बना हुआ है। भारत में होम्योपैथी डॉक्टर की संख्या ज्यादा है तो होम्योपैथी पर भरोसा करने वालों की भी संख्या ज्यादा ही है। भारत सरकार भी इस चिकित्सा पद्धति पर काफी ध्यान दे रही है इसे आयुष मंत्रालय के अंतर्गत जगह दी गई है। क्रिश्चियन फेडरिक सैमुअल हैनीमैन का जन्म 10 अप्रैल 1755 में हुआ था। ये एक जर्मन एलोपैथिक चिकित्सक थे जिन्हें बाद में होम्योपैथी चिकित्सा प्रणाली बनाने के लिए जाना जाता है इन्हें होम्योपैथिक का जनक कहा जाता है डॉक्टर हैनीमैन को 7 भाषाओं जर्मन, इटैलवी, स्पेनिश, फ्रेंच, अंग्रेजी, लैटिन, ग्रीक भाषा के जानकार थे। हैनीमैंन ने 10 अगस्त 1779 को एर्लागेन विश्वविद्यालय में चिकित्सा का अध्ययन किया और एम डी की उपाधि प्राप्त कही। इन्होने सिनकोना नामक पेड़ की छाल से मलेरिया की दवा का खोज किया और सर्वप्रथम इसका प्रयोग अपने ऊपर किया और लक्षण अनुसार मलेरिया रोग के लिए सिनकोना दवा का आविष्कार किया। इसलिए इन्हें प्रयोगिक औषधि विज्ञान का जनक कहा जाता है। 1790 में सिनकोना प्रयोग के बाद सिमिलिया, सिमिलीब्स क्येरेटर के सिद्धांत का प्रमाण दिया। इनकी मृत्यु 2 जुलाई 1843 (88 वर्ष) की उम्र में पेरिस फ्रांस में हुई।
होम्योपैथी क्या है
यहा संमः समम् समयति या समरूपता दवा सिद्धांत पर आधारित एक चिकित्सकीय प्रणाली है। याद दवाओं द्वारा रोगी का उपचार करने की एक ऐसी विधि है जिसमें किसी स्वस्थ्य व्यक्ति में प्राकृतिक रोग का अनुरूपण करके के समान लक्षण उत्पन्न किया जाता है, जिससे रोगग्रस्त व्यक्ति का ऊपर उपचार किया जा सकता है। यह सबसे सस्ती और सुलभ उपचार है जो कि बिना किसी नुकसान के व्यक्ति को निरोग करती है। 80 प्रतिशत मामलों में लोग होम्योपैथी खाते हैं। होम्योपैथी हमेशा से ही मिनिमम डोज के सिद्धांत पर काम करती है। इसमें कोशिश की जाती है कि दवा कम से कम दी जाए, इसलिए डॉक्टर इसे मीठी गोली में भिगो कर देते हैं।
छोटे बच्चों में दस्त की समस्या और होम्योपैथी
बच्चों में दस्त आजकल आम बीमारी हो गई है, ज्यादातर छोटे बच्चों में दस्त के कारण होते हैं। जैसे दांत निकलते समय बार-बार मुंह में उंगली डालना, खिलौने डालना, बाहरी जंक फूड और बच्चों का मां का स्तनपान न करना, मिट्टी खाना आदि । पोडोफाइलम, कैमोमिला आर्सेनिक, मर्कसाल एलोज आदि लक्षणानुसार चिकित्सक की देख रेख में दिया जा सकता है।
लेखक- आयुष चिकित्साधिकारी जिला चिकित्सालय-बस्ती हैं ।