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जयन्ती पर याद किये गये मशहूर शायर मिर्जा गालिब

कबीर बस्ती न्यूजः

बस्ती ।  प्रेमचन्द साहित्य एवं जन कल्याण संस्थान द्वारा मंगलवार को मशहूर शायर मिर्जा गालिब की 226 वीं जयन्ती अवसर पर कलेक्टेªट परिसर में सत्येन्द्रनाथ मतवाला की अध्यक्षता में मनाया गया।
मुख्य अतिथि डा. वी.के. वर्मा  ने कहा कि मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर, 1797 में आगरा के कला महल में हुआ था। गालिब मुगलकाल के आखिरी महान कवि और शायर थे। मिर्जा गालिब के शेर भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभार में मशहूर हैं।
विशिष्ट अतिथि डा. ओम प्रकाश पाण्डेय ने कहा कि मिर्जा गालिब की प्रथम भाषा उर्दू थी लेकिन उन्होंने उर्दू के साथ-साथ फारसी में भी कई शेर लिखे थे। गालिब की शायरी लोगों के दिलों को छू लेती है। गालिब की कविताओं पर भारत और पाकिस्तान में कई नाटक भी बन चुके हैं। “हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले” उनका प्रसिद्ध शेर है। बी.के. मिश्र ने कहा कि मिर्जा गालिब की शायरी के अनेक रंग है। उन्होने समय के सत्य को शव्दों में उतारा जो अजर अमर है। वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम प्रकाश शर्मा ने कहा कि यह सच है कि शायर तो बहुत हुए पर गालिब का अंदाज-ए बयां कुछ और ही था। यह बात इस शायर को भी बखूबी मालूम थी। शायद ही किसी और शायर ने अपने बारे में इतने आत्मविश्वास के साथ ऐसा ऐलान किया हो- हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे, पर कहते हैं कि गालिब का है अंदाज-ए-बयां और रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल, जब आंख से ही न टपका तो फिर लहू क्या है? ऐसे शेर हर युग में लोगों को प्रेरणा देंगे।
आयोजक सत्येन्द्रनाथ मतवाला ने गालिब के शेर “हाथों की लकीरों पर मत जा ए गालिब, नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होता” की चर्चा करते हुये कहा कि गालिब की शायरी युगों तक लोगों को प्रेरणा देगी। वरिष्ठ साहित्यकार डा. रामकृष्ण लाल जगमग ने कहा कि मिर्जा गालिब जैसे शायर इतिहास में कभी-कभी जन्म लेते हैं। उनके शेर युगों तक लोगों को प्रेरणा देते रहेंगे।
कार्यक्रम में डा. रामकृष्ण लाल जगमग के संचालन में मुख्य रूप से पं. चन्द्रबली मिश्र,     अनुरोध कुमार श्रीवास्तव,  विनय कुमार श्रीवास्तव, प्रदीप कुमार श्रीवास्तव, पंकज सोनी, डा. अफजल हुसेन ‘अफजल’, साइमन फारूकी, दीनानाथ यादव, गणेश, दीपक सिंह प्रेमी, राजेन्द्र सिंह राही, राघवेन्द्र शुक्ल, हरिकेश प्रजापति, अजीत कुमार श्रीवास्तव, अशद वस्तवी, सन्तोष कुमार श्रीवास्तव, कृष्णचन्द्र पाण्डेय, राहुल यादव आदि ने अपनी रचनाओं के पाठ के साथ ही मिर्जा गालिब को याद किया।