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तो क्या…….माननीयों की आगवानी और सरकारी योजनाओं का प्रचार करने के लिए स्कूल जाती हैं बेटियां ?

सरकारी कन्या विद्यालयों मे शिक्षा ग्रहण करने वाली छात्राओं का इस्तेमाल माननीयों की अगुवानी और लगभग सभी सरकारी योजनाओं का तख्ती व वैनर लेकर प्रचार कराना कितना सही है कितना गलत ? यह विचार करने वाला मगर गंभीर यक्ष प्रश्न है। रैलियों मे इन बेटियों के साथ होने वाला दुर्दशा किसी से छिपी नही है। मगर इस विशय पर आवाज उठाने वाला समाज मे कोई नही है।
हालात बद से बदतर है। जब भी सरकारी कार्यक्रमों मे स्कूली बेटियों को बुलाया जाता है। उनके खानपान की कोई व्यवस्था आयोजक मण्डल द्वारा नही किया जाता है। अपने स्कूल से कार्यक्रम स्थल तक पैदल जाना और कार्यक्रम के समापन के बाद बेटियों को भूखे, प्यासे फिर पैदल ही वापस जाना उनकी मजबूरी होती है। 5 से 6 घण्टे कार्यक्रम झेलने 10 से 15 किमी पैदल चलने के बाद बेटियों की हिम्मत अपने टीचर से कुछ कहने व मांगने की हिम्मत नही होती है। क्योंकि बेटियां अनुशासित होती हैं। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। बेटियों का मुर्झाया चेहरा देखकर किसी का भी दिल मुंह को आ जाता है। टीचर भी बेचारी क्या करे उनके भी हाथ मे कुछ नही होता। वे स्वयं आयोजक मण्डल के दया पर निर्भर रहती हैं। किसी भी कार्यक्रम के लिए टीचरों को बेटियों को जलपान कराने के लिए फूटीकौडी भी नही मिलती है। जबकि प्रत्येक कार्यक्रमों के प्रचार – प्रसार के लिए षासन से मिला भारी भरकम बजट साहब फर्जी बिल बना कर चट कर जाते हैं। अधिकतर कार्यक्रमों मे प्रायः देखा गया है कि बेटियां भूख और प्यास से तडप कर बेहोष होकर गिर जाती है। फिर मैडम जी बिटिया के अभिभावक को फोन लगा देती हैं कि आपकी बिटिया की तबियत खराब हो गयी है जल्दी से आकर ले जाईए….। क्या यही इंसानियत और मानवता है ? अभिभावक क्या इसी लिए ऐसे स्कूलों के प्रबन्धन पर भरोसा करके बेटियों को स्कूल पढने के लिए भेजते हैं ? बेटियों के अभिभावक तो यह जानते हैं कि बेटी स्कूल पढने गयी है लेकिन उन्हें यह नही मालूम कि बेटी हाथ मे तख्ती और बैनर लिए सडकों पर रैली मे षामिल है। अगर कोई बेटी कार्यक्रम मे जाने से ना-नुकुर करती है तो टीचर की घुडकी व धमकी की षिकार बन जाती है।
यह सही है कि बेटियों को समाज के मुख्य धारा से जोडना आवष्यक है। मगर सभी सरकारी योजनाओं के प्रचार, माननीयों की आगवानी तथा राजनैतिक कार्यक्रमो मे ले जाना कितना उचित है ? बेटियो से स्वागत कराकर माननीयों का सीना 56 इंच का हो जाता है। उनकी तारीफ और षान मे बेटियां गीत व कसीदें पढती हैं। लोग खुष होकर तालियां बजाते हैं। यहा भी टीचर रिंग मास्टर का रोल अदा करती देखी जा सकती हैं। एक तरह से देखा जाए तो यह बाल अधिकारों के हनन का मामला है। लेकिन समाज के ठेकेदार व प्रबुद्वजन की चुप्पी गढी गयी परम्पराओं बहती नजर आ रही है। इस गंभीर विशय पर कई समाज के प्रबुद्वजनों से उनका विचार लिया गया जिसे इस रिर्पोट मे शामिल किया गया है।

बस्ती जिले के जिला विद्यालय निरीक्षक ने कहा कि छात्राओं को किताबी ज्ञान के अलावा चतुर्मखी ज्ञान भी आवष्यक होता है। बच्चों को कार्यक्रमों के माध्यम से सरकारी योजनाओं की जानकारी भी होती है।

प्रख्यात् समाज सेवी व चिकित्सक डा0 वीके0 वर्मा कहते हैं कि छात्राओं के लिए यदि प्रेरणादायी कार्यक्रम हो तो उन्हें ऐसे कार्यक्रमों मे जरूर शामिल किया जाना चाहिए। लेकिन सभी सरकारी योजनाओं का प्रचार तथा राजनैतिक कार्यो मे इस्तेमाल करना कदापि उचित नही है।

वरिष्ठ पत्रकार सियाराम पाण्डेय शान्त जी कहते हैं कि बेटियों को उनके लिए जरूरी और ज्ञानबर्धक कार्यक्रमों मे शामिल किया जाना तो उचित है मगर उन पर राजनैतिक और योजनाओं का प्रचार थोपना बिल्कुल अनुचित है और यह बाल अधिकारों का हनन् भी है।

स्ूर्यबख्षपाल स्मारक पीजी कालेज बनकटी के प्राचार्य डाॅ0 अजीत प्रताप सिंह कहते हैं कि छात्राओं मे विषयों के ज्ञान के साथ चहुंमुखी ज्ञान भी होना जरूरी है क्योंकि वही देष के भविश्य भी हैं और वही षिक्षित होकर समाज का निर्माण कर परिवार को षिक्षित बनाती हैं। बेटियां हमारे समाज की आइकान होती हैं। श्री सिंह ने कहा कि कार्यक्रमों मे बेटियों के लिए आयोजक मण्डल द्वारा उनके खान-पान की व्यवस्था अवष्य करनी चाहिए।

इण्डियन पब्लिक स्कूल के डायरेक्टर एवं प्रख्यात् समाजसेवी कैलाष नाथ दूबे कहते हैं कि निःसन्देह बेटियों को समाज के मुख्य धारा से जोडने के लिए किताबी ज्ञान के अलावा चर्तुमुखी ज्ञान भी होना आवष्यक है। कई प्रेरणादायक सरकारी योजनाऐं हैं उनमें बेटियों को जरूर षामिल होना चाहिए। लेकिन कार्यक्रमों मेे बेटियों को जलपान से वंचित रखना और राजनैतिक कार्यक्रमों मे प्रयोग करना बिल्कुल भी उचित नही है।

दिनेश प्रसाद मिश्र
संपादक
कबीर बस्ती न्यूज, उ0प्र0।