अयोध्या में बनेगा अनूठा मंदिरों का संग्रहालय, प्राचीन शैलियों के मंदिरों के बनाए जाएंगे कई मॉडल
कबीर बस्ती न्यूज:
अयोध्या: विश्व में अयोध्या की पहचान ऐसे शहर के रूप में है जहां हर घर में मंदिर हैं। अब यहां अनूठा मंदिरों का संग्रहालय भी आकार लेने जा रहा है। यहां लोगों को हजारों साल पुराने मंदिरों के साथ ही उनकी निर्माण शैलियों के बारे में भी जानकारी दी जाएगी। यहां प्राचीन शैलियों के मंदिरों के कई मॉडल बनाए जाएंगे। संग्रहालय का परिसर इस अंदाज में बनाया जाएगा कि यहां प्रवेश करने पर भी लोगों को किसी मंदिर का ही अहसास हो। देश-विदेश के लोगों को यहां हजारों साल पुराने मंदिरों की तकनीक पर शोध करने का मौका भी मिलेगा। संग्रहालय के लिए गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड के पास जमीन चिह्नित की गई है।
राममंदिर निर्माण के साथ ही अयोध्या विश्वस्तरीय पर्यटन नगरी के रूप में भी विकसित हो रही है। इसी क्रम में अब अयोध्या में आधुनिक सुविधाओं से लैस विश्वस्तरीय संग्रहालय बनाए जाने की योजना है। यह अपने आप में अनूठा संग्रहालय होगा, क्योंकि इसके जरिए देश-विदेश के लोगों को भारतीय संस्कृति के साथ-साथ, भारतीय ज्ञान-विज्ञान, मंदिर निर्माण की परंपरा उनकी अद्भुत तकनीक, स्थापत्य, वास्तु शास्त्र की जानकारी भी हासिल हो सकेगी।
संग्रहालय निर्माण को लेकर शासन के निर्देश पर एक टीम ने विगत दिनों अयोध्या का दौरा किया। बताया गया कि इसके लिए रामजन्मभूमि के ठीक पीछे स्थित गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड के पास 15 हजार स्क्वायर मीटर नजूल की जमीन चिह्नित की गई है। इस योजना से जुड़े मंदिरों पर शोध करने वाले चेन्नई निवासी प्रवीण की सहयोगी रिचा त्रिपाठी बताती हैं कि यह संग्रहालय विश्व के लिए एक बड़ा शोध केंद्र बनेगा। हमारे प्राचीन मंदिरों में विज्ञान का भी अहम योगदान रहा है। एक भी नक्काशी बिना किसी मतलब के नहीं की गई थी। इसके पीछे कोई न कोई विज्ञान जरूर था। जैसे प्राचीन मंदिरों में टेलीस्कोप थे, फव्वारे की तरह आकृतियां थीं यह सभी कुछ विज्ञान पर आधारित था।
संग्रहालय में बनाए जाएंगे अलग-अलग प्रकल्प। एक में मंदिरों की शैली, दूसरे में हजारों साल पुराने मंदिरों की तकनीक तो किसी में विदेश में स्थित हिंदू धर्म के मंदिरों की जानकारी होगी। संग्रहालय में मंदिरों के कई प्राचीन मॉडल भी होंगे। मंदिर का विकास कब से शुरू हुआ, किस-किस शैली के मंदिर बने। आज तक मंदिर का निर्माण का क्रम कैसे आगे बढ़ा इन सबकी जानकारी मिल सकेगी। प्राची बताती हैं हालांकि अभी यह योजना शासन के सामने रखी गई है। अनुमति मिलते ही इस पर काम शुरू होगा। (संवाद)
सौ ईसा पूर्व से शुरू हो गया था मंदिर निर्माण
इतिहासविद् व राजा मोहन गर्ल्स पीजी कॉलेज की प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभागाध्यक्ष डॉ. प्रज्ञा मिश्रा बताती हैं कि भारत में सौ ईसा पूर्व से लेकर 1800 ईसवी तक निरंतर मंदिरों का निर्माण मिलता है। भारत में मंदिर निर्माण की तीन शैलियां नागर, द्रविड़ व बेसर प्रचलित हैं। कालांतर में इन शैलियों का आधुनिकीकरण होता गया, लेकिन इनका मूल स्वरूप आज भी कायम है। उन्होंने बताया कि वैदिक काल में मंदिरों में देवालय बनाए जाते थे। जिसमें पिंडी की स्थापना होती थी। गुप्त काल में 275 से 550 ई. के बीच सबसे पहले ईंट के मंदिर का निर्माण किया गया। फिर इनमें मूर्तियों की स्थापना का प्रचलन शुरू हुआ। गुप्त काल में नागर शैली के ही मुख्य मंदिर बने। इसके बाद 1200 ई. तक आते-आते अर्थात पूर्व मध्यकाल तक वे द्रविड़ शैली व बेसर शैली में बनाये जाने लगे।
डॉ. प्रज्ञा बताती हैं कि मंदिरों के निर्माण के पीछे राजनीतिक व प्रशासनिक कारण भी थे। भारतीय राजनीति में अनेक राजपूत राजाओं का जब उद्भव हुआ जैसे चंदेल, परिहार, चौहान, गढ़वाल, पाल ये सभी वंश किसी न किसी उद्देश्य से अपनी नवीन सत्ता स्थापित कर रहे थे। ये समाज की स्वीकृति पाने, वैभव स्थापित करने के लिए सैकड़ों मंदिरों का निर्माण करा रहे थे।
उन्होंने कहा कि मौर्य काल से पत्थरों को काटने व तराशने की तकनीक का विकास हुआ। इसी को प्रौद्योगिकी विकास के लिए आगे बढ़ाने का काम किया गया। यहां के राजाओं व शिल्पकारों ने मंदिरों की शैली को विदेशों में भी प्रचारित किया। कंबोडिया में अंकोरवाट सहित अमेरिका, इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम, फिजी, कनादडा, आस्ट्रेलिया, श्रीलंका, नेपाल देशों में हिंदू मंदिर आस्था का केंद्र हैं।