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मानव शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर स्वस्थ रखता है रंग चिकित्सा विज्ञान

वैज्ञानिक धरातल पर होली का महत्व – डॉ अर्चना दुबे
कबीर बस्ती न्यूजः
बस्ती। विश्व संवाद परिषद योग प्राकृतिक चिकित्सा प्रकोष्ठ की  उत्तर प्रदेश की प्रदेश अध्यक्षा डॉ अर्चना दुबे ने बताया कि फागुन मास के पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाने वाला यह होली का त्यौहार हम युगों युगों से मनाते आ रहे हैं यह आपस में भाईचारे एवं सौहार्दपूर्ण वातावरण को विकसित तो करता ही है साथ ही इसका अत्यंत वैज्ञानिक कारण भी है जिसे हम अज्ञानता वश ना समझ कर मात्र विलासिता पूर्ण त्योहार के रूप में जानते हैं जिसकी वजह से हम में से अधिकांश लोग होली के अवसर पर अपने आप को घरों में कैद होकर टीवी के सामने या फिर मोबाइल के माध्यम से होली जैसे त्यौहार को देखना ज्यादा पसंद करते हैं।
 यह होली का त्यौहार अत्यंत पुरातन है जिसका वर्णन द्वापर युग में कृष्ण एवं राधा तथा त्रेता युग में राम और सीता के काल से ही नहीं वरन शिव जी एवं पार्वती जी के भी होली खेलने की परंपरा रही है होली के पौराणिक होने की वजह के अलावा यह अत्यंत इसका अत्यंत वैज्ञानिक महत्व भी है आज हम होली के इसी वैज्ञानिक पक्ष को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं होली का त्यौहार ऐसे समय में मनाया जाता है जब सर्दी के मौसम की समाप्ति एवं ग्रीष्म ऋतु के आगमन का अंधकार होता है आखिर ऐसा क्यों इसका कारण यह है कि हमारे शरीर में अनेकों अंग है और हर अंग का हमारे वेद उपनिषद शास्त्रों एवं एक्यूप्रेशर पद्धति के अनुसार एक विशेष रंग निर्धारित किया गया है जिसे आंख पश्चिमी देश पर स्वीकार करते हैं और इसके माध्यम से कलर चिकित्सा भी करते हैं।
 हमारे शरीर में रंगों का विशेष महत्व होता है इसीलिए हमारे बड़े बुजुर्ग अलग-अलग रंगों की अंगूठियां सिंदूर चूड़ियां बिंदिया कपड़े पहनने की सलाह देते थे इसी प्रकार विशेष रोग के होने पर प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा विशेष रंग के पानी या दवा का प्रयोग कराया जाता है जो इस बात के लिए प्रमाण देते हैं कि कलर रंग चिकित्सा का महत्व है। इसी प्रकार शरीर में लाल रंग की कमी जो हमारे सशक्त का प्रतीक है की कमी होने पर हमें कमजोरी थकान आलस्य एवं संबंधी परेशानियां एवं समस्या दिखने लगती हैं खून की कमी कहते हैं होता है फल एवं सब्जियों को अपने आहार में वरीयता देने की सलाह देते हैं। इत्यादि हमारे शरीर कमजोर होने पर हमें लाल रंग के फल खाने की सलाह दी जाती है। चुकंदर खाने की सलाह दी जाती है पपीते को सर्वाधिक उपयुक्त बताया जाता है क्योंकि आमाशय के लिए पीला रंग निर्धारित किया गया है यहां यह हमारे शरीर के अंग है और हर अंग है तो हमारे शरीर के अंदर रंग बिरंगी दुनिया का हरा रंग रंगीला रंग से संबंधित चीजों को कम या ज्यादा करने की सलाह देते हैं।
 उदाहरण के लिए हमारे शरीर में पीले रंग की अधिकता हो जाते हैं तब पदार्थों को स्वस्थ होने तक त्याग करने की सलाह देता है इस प्रकार होली एक ऐसा त्यौहार है जो हमारे शरीर में स्थित अंगों में के रंग में आए असंतुलन को स्वता ठीक करने का काम करता है हम जिस प्रकार इस ब्रह्मांड में अनेकों प्रकार के रंग हैं किंतु हमें पत्तियां देखकर हरे रंग की दिखाई देती है। क्योंकि हमारी आंखो द्वारा यह रंग वापस कर दिया जाता है इसी तरह सूर्य की किरणें समुद्र का तालाब के पानी में सूर्य की किरणें जब समुद्र के तालाब के पानी पड़ती है तो हमें इसका रंग नीला दिखाई देता है जबकि पानी का रंग कोई नहीं होता ऐसा इसलिए कोई नीले रंग के किरणों का तरंग दर्द बाकी रंग तुलना में कम होने की वजह से वह पानी के भीतर अवशोषित नहीं हो पाता जिसकी वजह से हमें रंग दिखाई देता है।
 जब हम होली के त्यौहार में अलग-अलग रंगों को अपने शरीर में धारण करते हैं तो हमारे शरीर में जिन अंगों को जिन रंगों की आवश्यकता होती है वह अपने अनुसार उन रंगों को सूचित कर लेते हैं और अगले आने वाले 1 वर्ष तक अपने आप को संतुलित कर लेते हैं। जो हमें वर्ष भर शरीर हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर स्वस्थ रखते हैं। किंतु आज के आधुनिक समय में हम रंग का प्रयोग तो करते हैं लेकिन वह अत्यंत रसायन युक्त होता है जिससे हमारे शरीर के को लाभ के बदले हानि अधिक होती है इसलिए होली के अवसर पर आप सभी से अनुरोध होगा कि होली अत्यंत वैज्ञानिक तो है किंतु इसका सावधानी और विवेक के साथ प्रयोग करें तो यह हमारे शरीर को एक वर्क वैक्सीन देने का कार्य कर सकता है।