सौम्या ने दी टीबी को मात अब निभा रहीं दूसरों का साथ
गोबिंद कुमार ने पोषक सामग्री प्रदान करने के साथ की हरसम्भव मदद
कबीर बस्ती न्यूज:
गोरखपुर: मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट (एमडीआर) टीबी मरीजों को इलाज के दौरान पोषण और संबल मिल जाए तो बीमारी से लड़ाई आसान हो जाती है । यह साबित कर दिखाया है जिला क्षय रोग केंद्र के सीनियर ट्रीटमेंट सुपरवाइजर (एसटीएस) गोबिंद कुमार ने । उन्होंने टीबी रोगी सौम्या को गोद लेकर संबल दिया और पोषक सामग्री से सहयोग किया । इसका फायदा यह हुआ कि सौम्या ने टीबी को मात देकर अब खुद टीबी चैंपियन के तौर पर वर्ल्ड विजन इंडिया संस्था के जरिये टीबी मरीजों का सहारा बन चुकी हैं ।
महानगर की रहने वाली सौम्या भारती(21) को चौदह साल की उम्र में टीबी हो गयी । वह बताती हैं कि परिवार ने पहले निजी चिकित्सालय में इलाज करवाया । इलाज में करीब 70 हजार रुपये खर्च हो गये लेकिन कोई दवा फायदा नहीं करती थी। जो भी दवा खाती थीं उससे उल्टी, चक्कर आना और कई तरह की दिक्कतें आती थीं लेकिन बीमारी पर कोई असर नहीं पड़ा । उनके मोहल्ले की एक महिला ने जिला क्षय रोग केंद्र में दिखाने की सलाह दी । वह पिता के साथ वहां वर्ष 2017 में गईं और सरकारी दवा शुरू की लेकिन प्रतिकूल प्रभाव बना रहा । इसी दरम्यान वहां पर एसटीएस गोबिंद की मुलाकात उनके पिता से हुई । सौम्या के बीमारी का इलाज करवा कर थक चुके उनके परिवार को गोबिंद ने सम्बल दिया और कहा कि एमडीआर टीबी ठीक हो जाती है, बस दवा बंद नहीं करनी है।
गोबिंद बताते हैं कि सौम्या के पिता हार चुके थे और उनका कहना था कि शायद टीबी नहीं ठीक हो पाएगी । यह एमडीआर का जटिल मामला था । सौम्या की जांच कराई गई तो पता चला कि श्रेणी चार की दवाओं से ही वह ठीक हो पाएंगी । वह काफी कमजोर हो गयी थीं, इसलिए दवा के साथ-साथ उन्हें पोषण की भी आवश्यकता थी । उनकी श्रेणी चार की दवा शुरू करने के साथ-साथ पोषक आहार भी दिया । वर्ष 2018 में सौम्या को निःक्षय पोषण योजना के तहत पंजीकृत किया गया और उन्हें पोषण के लिए दी जाने वाली 500 रुपये के रकम से इलाज चलने तक सहयोग दिया गया । राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के आह्रान पर सौम्या को गोद लेकर फल, गुण, सत्तू, चना आदि के जरिये सहयोग किया गया। फोन पर और समय-समय पर मिल कर भरोसा दिया कि वह ठीक हो जाएंगी।
सौम्या बताती हैं कि जब उनकी बीमारी ठीक नहीं होती थी तो कई बार वह हताश हो जाती थीं, ऐसे में गोबिंद ने उन्हें समय-समय पर संबल दिया कि वह ठीक हो जाएंगी। दवाइयां दिलवाईं, पोषक सामग्री दिलवाया व मनोबल बढ़ाया ।इससे 27 महीने बाद वह ठीक हो गईं। आठवीं के बाद टीबी के कारण उनकी पढ़ाई बंद हो गई थी, जिसे अब फिर से शुरू करेंगी । वह शहर के करीब 41 टीबी रोगियों के संपर्क में हैं और उन्हें समझा रही हैं कि टीबी का इलाज सरकारी अस्पताल से निःशुल्क हो सकता है। दवा बिना चिकित्सक के सलाह के नहीं बंद करनी है ।
ऐसे करना है सहयोग
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ रामेश्वर मिश्र का कहना है कि टीबी मरीज को गोद लेने वाले को उपचार के दौरान माह में एक से दो बार मरीज के घर भ्रमण करना है । भ्रमण में मरीज के हालचाल, उपचार और निक्षय पोषण योजना से संबंधित जानकारी लेनी है । रोगी को पोषण पर सुझाव एवं स्वेच्छा से एक किलो भुना चना, एक किलो मूंगफली, एक किलो गुड़, एक किलो सत्तू, एक किलो तिल या गजक, एक किलो अन्य पोषक सामग्री भी उपलब्ध कराना चाहिए । रोगी को अगर स्वास्थ्य संबंधित समस्या है तो उसे नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर चिकित्सक की सलाह के लिए भेजना है । प्रयास यह भी करना चाहिए कि पात्र मरीजों को अन्य सरकारी सुविधाओं जैसे विधवा व वृद्धावस्था पेंशन आदि की जानकारी दें और लाभ दिलवाने का प्रयास करें ।