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शरीर रथ को जो श्रीेकृष्ण के हाथों में सौंप देता है उसे विजय श्री मिलती है

श्रीमद्भागवत कथा

कबीर बस्ती न्यूजः

बस्ती । तक्षक जगत से पृथक नही है, वह भी ब्रम्ह रूप है। शुकदेव जी ने परीक्षित को ब्रम्ह का दर्शन कराकर निर्भय कर दिया। मनुष्य का शरीर ही वह कुरूक्षेत्र है जहां निवृत्ति और प्रवृत्ति का युद्ध होता रहता है। इस शरीर रथ को जो श्रीेकृष्ण के हाथों में सौंप देता है उसे विजय श्री मिलती है । सुदामा ने ईश्वर से निरपेक्ष प्रेम किया तो उन्होने सुदामा को अपना लिया और अपने जैसा वैभवशाली भी बना दिया। जीव जब ईश्वर से प्रेम करता है तो ईश्वर जीव को भी ईश्वर बना देते हैं। यह सद् विचार महात्मा शिवकुमार शुक्ला ने बस्ती सदर विकास खण्ड के पिपराचीथर में आयोजित 7 दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा को विश्राम देते हुये व्यासपीठ से व्यक्त किया।
कथा व्यास अमरनाथ पाण्डेय ने  सुदामा चरित्र, उद्धव जी का भगवान की चरण पादुका लेकर बदरिकाश्रम जाने, यदुकुल संहार और भगवान के स्वधाम गमन, और कलयुग के धर्मो के वर्णन सहित अनेक प्रसंगो का वर्णन विस्तार से किया। कहा कि सारा विश्व श्रीकृष्ण का वंदन करता है और वे एक दरिद्र ब्राम्हण और उनकी पत्नी सुदामा का वंदन करते हैं।  सुदामा चरित्र का भावुक वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि शारीरिक मिलन तुच्छ है और मन का मिलन दिव्य। यदि धनी व्यक्ति दरिद्रों को हृदय से सम्मान दें तो आज भी सभी नगर द्वारिका की तरह समृद्ध हो सकते हैं।
श्रीकृष्ण द्वारा उद्धव को उपदेश देने के प्रसंग का वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि ज्ञानयोग, निष्काम कर्मयोग, भक्तियोग का ज्ञान देते हुये भगवान कृष्ण ने कहा कि उद्धव इस अखिल विश्व में मैं ही व्याप्त हूं, ऐसी भावना करना। सुख दुख तो मन की कल्पना है। जो सदगुणो से सम्पन्न है वह ईश्वर है और असंतुष्ट व्यक्ति दरिद्र।
मुख्य यजमान सावित्री मिश्रा ने विधि विधान से कथा व्यास का पूजन किया।  ओम प्रकाश मिश्रा, माधुरी मिश्रा, प्रेम प्रकाश, जय प्रकाश, चन्द्र प्रकाश, सत्यम, शिवम, शुभम, परम, मंगलम, राम यज्ञ मिश्रा, अनिल कुमार मिश्र के साथ ही अनेक श्रोता उपस्थित रहे।