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दोबारा टीबी की चपेट में आ जा रहे हैं 10-12 प्रतिशत मरीज

– दोबारा टीबी होने पर सावधानी बरतें, समय से कराएं इलाज

– स्वस्थ होने के बाद भी मानें चिकित्सक की सलाह 

कबीर बस्ती न्यूज।

बस्ती। पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ़ साइंस जर्नल (पीएलओएस) में प्रकाशित भारत के एक अध्ययन के अनुसार एक बार स्वस्थ होने के बाद लगभग 10 से 12 प्रतिशत मरीज़ दोबारा टीबी की चपेट में आते हैं। इसमें उपचार पूरा होने के छह माह के अन्दर संक्रमण की सम्भावना सबसे ज्यादा होती है। धूम्रपान और शराब का सेवन करने, अनियंत्रित मधुमेह और कुपोषण से ग्रसित व्यक्तियों को इसका खतरा अधिक होता है।

दोबारा टीबी की चपेट में आने से बचने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। डॉक्टर द्वारा सुझाई गई दवाओं का समय से सेवन करें और जितना संभव हो संभावित रोगियों के संपर्क में आने से बचें।

डीटीओ डॉ. एके मिश्रा ने बताया कि आमतौर पर उपचार छह महीने से एक वर्ष तक चलता है, लेकिन ऐसा देखा गया है कि कई मरीजों में उपचार के बाद भी टीबी फिर से उभर आती है। इसे रिलैप्स टीबी या रिकरिंग टीबी कहा जाता है। दोबारा टीबी होने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। पहली बार इलाज ठीक से या पूरा न हो पाना, जिससे पहले से भी गंभीर या ड्रग रेजिस्टेंस टीबी होने की सम्भावना रहती है। इसके अलावा स्वस्थ हुए व्यक्ति की सेहत कमज़ोर होने की वजह से भी दोबारा भी टीबी का संक्रमण हो सकता है। दोनों ही स्थितयों में मरीज़ का उचित फॉलोअप होना चाहिए।

बीसीए डिग्री धारक बस्ती शहर के 32 वर्षीय युवक प्रिंस (बदला नाम) दो बार टीबी के शिकार हुए, लेकिन अब स्वस्थ होकर एक सामान्य जीवन जी रहे हैं। प्रिंस ने बताया कि जनवरी 2019 में खांसी की शिकायत हुई। प्राइवेट डॉक्टर ने जांच में टीबी की पुष्टि की जिसके बाद छह माह तक पूरा इलाज लिया। इलाज पूरा होने पर डॉक्टर ने दोबारा टीबी की जांच नहीं की। एक साल बाद दोबारा खांसी आने लगी और मुंह से खून भी आने लगा। टीबी क्लीनिक में बलगम की जांच कराई तो मालूम हुआ कि ड्रग रेजिस्टेंस (डीआर) टीबी है।

टीबी क्लीनिक के सीनियर ट्रीटमेंट सुपरवाइजर (एसटीएस) गौहर अली ने बताया कि दवा का पूरा कोर्स करने पर डीआरटीबी के मरीज भी ठीक हो जाते हैं। परिवार के सभी लोगों ने स्क्रीनिंग कराई गई।

इलाज के साथ कैरियर का सफर जारी रखा। नियमित दवा का सेवन के साथ ही खान-पान पर विशेष ध्यान दिया। 28 अप्रैल 2022 को जांच रिपोर्ट निगेटिव आई। अगर शुरू से सरकारी अस्पताल में इलाज कराते तो उन्हें ठीक होने में कम समय लगता।

जिला कार्यक्रम समन्यवक एनटीईपी अखिलेश चतुर्वेदी का कहना है कि टीबी का सबसे सही और सटीक इलाज स्वास्थ्य विभाग के पास है।  यहां इलाज के साथ उचित फॉलोअप किया जाता है। इलाज पूरा होने पर जांच के बाद ही रोगी को टीबी मुक्त घोषित किया जाता है। वर्तमान में जिले में 3578 टीबी रोगियों का इलाज चल रहा है। हर पंजीकृत मरीज़ को इलाज पूरा होने तक 500 रुपए प्रति माह पोषण के लिए दिए जाते हैं और समय-समय पर फॉलो-अप किया जाता है।