यूपी चुनाव: ब्राह्मणों को साधने में जुटी BJP में अखिलेश ने लगाई सेंध, सपा का MYB फॉर्मूला बढ़ाएगा योगी की मुश्किल
लखनऊ: बदायूं की बिल्सी विधानसभा सीट, विधायक का नाम- पंडित राधाकृष्ण शर्मा। विधानसभा सीट- प्रयागराज, विधायक का नाम- शशांक त्रिपाठी। इन दोनों विधायकों में तीन बातें कॉमन हैं। पहली- ये दोनों बीजेपी के नेता थे और दूसरी- दोनों ने 10 जनवरी 2022 को समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया और तीसरी बात जो सबसे अहम है, वो यह है कि ये दोनों विधायक ब्राह्मण हैं। बिल्सी वाले विधायक पंडित राधाकृष्ण शर्मा 9 जनवरी को आखिरी बार सहसवान में हुई सीएम योगी आदित्यनाथ की रैली में मंच पर दिखाई दिए थे। इसके बाद से वह नजर नहीं आए और जब दिखाई दिए पार्टी का नाम बदलकर सपा हो चुका था।
प्रयागराज से बीजेपी विधायक शशांक त्रिपाठी का किस्सा भी कम रोचक नहीं है। 2012 में सपा के ही टिकट पर प्रयागराज की उत्तरी सीट से लड़े थे, मगर हार का सामना करना पड़ा, 2017 में कमल के निशान के साथ मैदान में उतरे और जीत गए, लेकिन इनको बीजेपी शायद रास नहीं आई तो शशांक त्रिपाठी दूसरी बार सपा की तरफ हो लिए।
यूपी में कभी मुस्लिम, यादव, दलित वोट बैंक के लिए जंग हुआ करती थी, लेकिन विधानसभा चुनाव 2022 में ब्राह्मण वोट साधने के लिए घमासान मचा है। सपा हो या बीजेपी, इनके नेता ‘भगवान परशुराम की जय’ का नारा लगाते दिखाई दे रहे हैं। इनमें से कौन ब्राह्मणों को रिझा पाता है, ये तो चुनाव के नतीजे ही बता पाएंगे, लेकिन कम से कम जुगत-जुगाड़ के मामले में तो सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, सीएम योगी आदित्यनाथ पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। अखिलेश यादव ने 10 जनवरी 2022 को बीजेपी को डबल झटका देते हुए उसके दो ब्राह्मण विधायकों को अपने पाले कर लिया।
कई और ब्राह्मण नेताओं की सपा में एंट्री करा चुके हैं अखिलेश
दिसंबर 2021 में अखिलेश यादव ने बसपा से निकाले गए हरिशंकर तिवारी को सपा जॉइन करा दी थी। हरिशंकर तिवारी के साथ उनके दो बेटे- भीमशंकर तिवारी और विनय शंकर तिवारी ने भी सपा का दामन थामा। भीमशंकर तिवारी संत कबीर नगर से लोकसभा सांसद रह चुके हैं, जबकि विनय शंकर तिवारी गोरखपुर के चिल्लूपार से विधायक हैं। इस तरह सपा को ब्राह्मण वोटों का ट्रिपल डोज मिल गया। संत कबीर नगर के खलीलाबाद से विधायक दिग्विजय नारायण चौबे भी बीजेपी को बाय-बाय बोल सपा में आ चुके हैं।
MYB कॉम्बिनेशन बनाने की जुगत में हैं अखिलेश यादव
यादव-मुस्लिम (MY) फैक्टर के दम पर बरसों से यूपी की सियासत में जमी हुई समाजवादी पार्टी का ये ब्राह्मण प्रेम बताता है कि अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव से विरासत में मिले यादव-मुस्लिम वोट बैंक में B यानी ब्राह्मण वोट बैंक को भी जोड़ना चाहते हैं। मतलब यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए अखिलेश यादव MYB वोट का कॉम्बिनेशन बनाने के लिए इंजीनियरिंग कर रहे हैं। इसके पीछे 2017 विधानसभा चुनाव के नतीजे भी बड़ा कारण हैं:
2017 विधानसभा चुनाव के नतीजे
सेंटर फॉर द स्टडीज ऑफ डिवेलपिंग सोसायटी (CSDS) के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले विधानसभा चुनाव में सपा का कोर वोटर- यादव, बीजेपी की तरफ खिसक गया। 2017 में 10 प्रतिशत यादव, 61 प्रतिशत अन्य ओबीसी, 9 प्रतिशत जाटव और 31 प्रतिशत अन्य दलितों ने वोट देकर बीजेपी को प्रचंड बहुमत तक पहुंचाया। साथ ही बीजेपी को 80 प्रतिशत ब्राह्मण वोट भी बोनस के तौर पर मिला, जो कि 2012 में केवल 42 प्रतिशत था। अखिलेश यादव, अब मुस्लिम, यादव और ब्राह्मण कॉम्बिनेशन पर दांव आजमा रहे हैं। 2012 चुनाव के नतीजे भी ऐसा करने के लिए अखिलेश को प्रेरित कर रहे हैं। उस चुनाव में सपा को मिले कुल 29 प्रतिशत वोटों में से 9 प्रतिशत ब्राह्मणों ने ही दिए थे, लेकिन 2017 में यादवों के साथ ब्राह्मण वोट भी खिसका और सपा की बुरी हालत हुई।
मायावती को भी ब्राह्मणों को लाना पड़ा था साथ, तभी 2007 में जीतकर आई थीं सत्ता में
एक जमाने में ‘तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ का नारा देने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती जब 2007 में पूर्ण बहुमत के साथ पहली बार यूपी की सत्ता पर काबिज हुई थीं, तब उनको भी अपने कोर-दलित वोटर के साथ ब्राह्मणों को लाना पड़ा था। मायावती के इसी प्रयोग के बाद राजनीतिक पंडितों ने बसपा की सोशल इंजीनियरिंग की भूरि-भूरि प्रशंसा की, क्योंकि दलित कोर वोटर वाली पार्टी का ब्राह्मण को साथ लाना इतना आसान काम नहीं था, लेकिन मायावती ने ऐसा करके दिखाया। बसपा 2022 में भी ब्राह्मणों की सोशल इंजीनियरिंग के लिए प्रयासरत है और जमकर ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित कर रही है।
यूपी में कैसा रहा है ब्राह्मणों का तिलिस्म
यूपी में ब्राह्मणों की आबादी 10 से 12 प्रतिशत है। 2017 चुनाव की बात करें तो बीजेपी के 312 में से 58 ब्राह्मण विधायक जीतकर आए थे। सीएम योगी के 56 मंत्रियों में 9 ब्राह्मण ही हैं। यूपी में जब तक कांग्रेस सत्ता पर काबिज रही तब तक ब्राह्मणों ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। एक जमाने में कांग्रेस का यूपी के ब्राह्मणों पर बड़ा होल्ड हुआ करता था। स्वतंत्रता के बाद से वर्ष 1989 तक 6 ब्राह्मण यूपी के मुख्यमंत्री बने। गोविंद वल्लभ पंत, सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, श्रीपति मिश्र और नारायण दत्त तिवारी। नारायण तिवारी तीन बार यूपी के सीएम रहे। तिवारी के बाद से कोई भी नेता चाहे वह ब्राह्मण हो या गैर ब्राह्मण यूपी के सीएम पर लगातार दो कार्यकाल नहीं बैठ सका।