पांच साल तक लगातार दवा खाने से समाप्त हो जाते हैं फाइलेरिया के कीटाणु
– फाइलेरिया से निपटने के लिए मई महीने में चलाया जाएगा अभियान
– फाइलेरिया को जड़ से समाप्त करने की दिशा में जुटें स्वास्थ्य कर्मी
कबीर बस्ती न्यूज:
संतकबीरनगर: मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ इन्द्र विजय विश्वकर्मा ने कहा कि फाइलेरिया दुनिया की दूसरे नंबर की ऐसी बीमारी है जो बड़े पैमाने पर लोगों को दिव्यांग बना रही है। यह जान तो नहीं लेती है, लेकिन जिंदा आदमी को मृत के समान बना देती है। इस बीमारी को हाथी पांव के नाम से भी जाना जाता है। साल में एक बार पांच साल तक अगर कोई व्यक्ति फाइलेरिया रोधी दवा खा ले तो उसे फाइलेरिया नहीं होगा । मई माह में फाइलेरिया को भगाने के लिए विशेष अभियान शुरू किया जाएगा, जिसमें स्वास्थ्य कर्मी घर-घर जाकर लोगों को दवा खिलाएंगे। इसके लिए आवश्यक तैयारियां चल रही हैं।
यह बातें उन्होने मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के सभागार में राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के अन्तर्गत एमडीए कार्यक्रम के जिला स्तरीय प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कही। इस दौरान पाथ संस्था के रीजनल नोडल आफिसर डॉ अनिकेत ने कहा कि रोग के शुरू होने पर फाइलेरिया की पहचान आसान नहीं है एवं इस बीमारी के लक्षण बीमारी के परजीवी माइक्रोफाइलेरिया के शरीर में प्रवेश के कई वर्षों बाद दिखाई देते हैं जो हाथी पांव, हाइड्रोसील का यूरिया आदि के रूप में प्रकट होते हैं l हाथी पांव का कोई इलाज नहीं है l लिंफेटिक फाइलेरियासिस को ही आम बोलचाल की भाषा में फाइलेरिया कहा जाता है।
जिला मलेरिया अधिकारी राम सिंह ने बताया कि आमतौर पर फाइलेरिया के कोई लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते, लेकिन बुखार, बदन में खुजली और पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द व सूजन की समस्या दिखाई देती है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाथी पांव और हाइड्रोसिल (अंडकोषों की सूजन) भी फाइलेरिया के लक्षण हैं। चूंकि इस बीमारी में हाथ और पैर हाथी के पांव जितने सूज जाते हैं इसलिए इस बीमारी को हाथीपांव कहा जाता है। वैसे तो फाइलेरिया का संक्रमण बचपन में ही आ जाता है, लेकिन कई सालों तक इसके लक्षण नजर नहीं आते। फाइलेरिया न सिर्फ व्यक्ति को दिव्यांग बना देता है बल्कि इससे मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
फाइलेरिया के कारण
डॉ अनिकेत के मुताबिक यह बीमारी मच्छरों द्वारा फैलती है, खासकर परजीवी क्यूलेक्स फैंटीगंस मादा मच्छर के जरिए। जब यह मच्छर किसी फाइलेरिया से ग्रस्त व्यक्ति को काटता है तो वह संक्रमित हो जाता है। फिर जब यह मच्छर किसी स्वस्थ्य व्यक्ति को काटता है तो फाइलेरिया के कीटाणु रक्त के जरिए उसके शरीर में प्रवेश कर उसे भी फाइलेरिया से ग्रसित कर देते हैं लेकिन ज्यादातर संक्रमण अज्ञात या मौन रहते हैं और लंबे समय बाद इनका पता चल पाता है। इस बीमारी का कारगर इलाज नहीं है। इसकी रोकथाम ही इसका समाधान है।
फाइलेरिया से बचाव
- फाइलेरिया चूंकि मच्छर के काटने से फैलता है,इसलिए बेहतर है कि मच्छरों से बचाव किया जाए। इसके लिए घर के आस-पास व अंदर साफ-सफाई रखें
• पानी जमा न होने दें और समय-समय पर कीटनाशक का छिड़काव करें। फुल आस्तीन के कपड़े पहनकर रहें।
• सोते वक्त हाथों और पैरों पर व अन्य खुले भागों पर सरसों या नीम का तेल लगा लें
• हाथ या पैर में कही चोट लगी हो या घाव हो तो फिर उसे साफ रखें। साबुन से धोएं और फिर पानी सुखाकर दवाई लगा लें
अपने सामने ही खिलाएं दवा – आसिफ
पीसीआई संस्था के जिला समन्वयक मोंहम्मद आसिफ ने बताया कि फाइलेरिया की दवा देने में सावधानी इस बात की है कि किसी भी ऐसे आदमी को दवा नहीं देनी है जो खाली पेट हो, उसकी आयु दो वर्ष से कम हो, गर्भवती हो या फिर किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हो। इन सारी बातों को पूरी तरह ध्यान देना होगा। फाइलेरिया की डोज दो साल से 5 साल के बच्चों के लिए 100 मिलीग्राम की एक गोली, 6 साल से 14 साल तक के बच्चों के लिए दो गोलियां व 15 साल से अधिक आयु के लोगों के लिए तीन गोलियों की खुराक तय की गयी है। किसी भी व्यक्ति को दवा अपने सामने ही खिलानी है। मान लिया जाय की टीम के पहुंचने पर कोई खाली पेट होने की बात कहे तो उसे दवा दें नहीं बल्कि यह कहें कि आप भोजन कर लें, जब वह भोजन कर ले तो आधे एक घण्टे बाद पहुंचकर उसे दवा खिलाएं।