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श्रीमद्भागवत कथा का फल मनःस्थित पर निर्भर-रवीश

कबीर बस्ती न्यूज:

बस्ती। प्रभु भजन में आनंद आए तो भूख प्यास भूल जाती है। मानव जीवन का उद्देश्य केवल धन संग्रह नहीं है। धर्म मुख्य है। धन को धर्म की मर्यादा में रहकर ही प्राप्त करना चाहिए। जगत में दूसरों को रुलाना नहीं, खुद रो लेना क्योंकि रोने से पाप जलता है। यह सद्विचार बुधवार को श्री राधेश्याम शास्त्री जी नें हर्रैया के तिनौता गाँव में श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन व्यक्त किया। कथा में पहुँचे प्राथमिक शिक्षक संघ के जिला मीडिया प्रभारी रवीश कुमार मिश्र को कथा व्यास श्री राधेश्याम शास्त्री तथा आयोजन समिति के सदस्यों द्वारा अंगवस्त्र भेंट कर सम्मानित किया गया। उन्होंने कहा कि आज के समय में भी कथा सुनने का पुण्य राजा परीक्षित जितना ही है बशर्ते कथा सुनने व सुनाने वाले की मनःस्थिति भी राजा परीक्षित और मुनि शुकदेव जैसी ही हो।
कृष्ण सुदामा मिलन की कथा का वर्णन करते हुए शास्त्री जी ने कहा कि पति यदि धन,संपत्ति, सुख, सुविधा दे और पत्नी ऐसे पति की सेवा करे तो इसमें आश्चर्य क्या है। धन्य है सुदामा की पत्नी सुशीला जिन्होंने भूखे रहकर भी दरिद्र पति को भी परमेश्वर मानकर सेवा करती रही। भगवान श्री कृष्ण ने जो संपत्ति कुबेर के पास भी नहीं है उसे सुदामा को दिया। सारा विश्व श्रीकृष्ण का वंदन करता है और वे एक दरिद्र ब्राम्हण और उनकी पत्नी सुदामा का वंदन करते हैं। सुदामा ने ईश्वर से निरपेक्ष प्रेम किया तो उन्होंने सुदामा को अपना लिया और अपने जैसा वैभवशाली भी बना दिया। कथा को विश्राम देते हुए शास्त्री जी ने कहा कि सतकर्म का कोई अन्त नही, कथा सुनकर जीवन में उतारोगे तो ही श्रवण सार्थक होगा।
इस दौरान धरणीधर मिश्र, रामप्रसाद मिश्र, अम्बिका प्रसाद ओझा, माधव दास ओझा, सुतीक्ष्ण मिश्र, जमुना मिश्र, गोपाल मिश्र,उमाकान्त तिवारी, बाल कृष्ण मिश्र,राम नेवाज मिश्र, राजकुमार मिश्र, राधेश्याम मिश्र, घनश्याम, अरुण, कल्पनाथ ओझा, जगदीश ओझा,प्रभाकर, दिवाकर, सुधाकर, जगदम्बा, कृपाशंकर, दयाशंकर, प्रेमशंकर,शिवकांत पाण्डेय, धीरेंद्र मिश्र, अशोक मिश्र, रामफूल मिश्र सहित बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे।