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सांस से सम्बन्धित कोविड मरीजों के लिए लाभकारी है चेस्ट फिजियोथैरेपी

−   श्वांस तथा फेफड़े के मरीजों के लिए वरदान है थैरेपी

−   जिला अस्पताल में उपलब्ध है चेस्ट फिजियोथैरेपी की सुविधा

कबीर बस्ती न्यूज:

संतकबीरनगर: अगर किसी व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होती है । अत्यधिक कफ जमा होता है । सर्दियों में उसकी समस्या अधिक बढ़ जाती है। इसके लिए दवा के साथ ही चेस्ट फिजियोथैरेपी देकर समस्या से काफी हद तक निजात पाया जा सकता है। कोविड काल में सांस के मरीजों के लिए भी यह काफी लाभदायक है।

यह कहना है जिला अस्पताल के दिव्यांग पुनर्वास केन्द्र के फिजियोथैरेपिस्ट डॉ बी. के. चौधरी का जो निरन्तर फिजियोथैरेपी के जरिए मरीजों को लाभ पहुंचा रहे हैं। कोरोना संक्रमण के कई लक्षणों में सांस लेने में तकलीफ एक प्रमुख लक्षण है। कोरोना की चपेट में आए मरीज़ों को निमोनिया का खतरा अधिक हो रहा है, जिसकी वजह से उनके फेफड़ों को नुकसान पहुंच रहा है। कोरोना से मुक्ति पाने के लिए जितनी दवा की जरूरत है उतनी ही एक्सरसाइज़ भी जरूरी है। सांस में दिक्कत वाले मरीज़ों को चाहिए कि वे फेफड़ो से जुड़ी एक्सरसाइज करें ताकि सांस की समस्या से छुटकारा पाया जा सके। सांस लेने में दिक्कत होने वाले मरीज़ों के लिए चेस्ट फिजियोथेरेपी सबसे बेहतर है।

चेस्ट फिजियोथेरेपी के बारे में जानें

कोरोना से बचाव में दवा के साथ चेस्ट फिजियोथेरेपी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस थेरेपी का सीधा संबंध श्वसन की प्रक्रिया से है। ऐसे में सभी लोग चेस्ट फिजियोथेरेपी से फेफड़े को और मजबूत कर कोरोना का मुकाबला आसानी से कर सकते हैं। फेफड़ों की सक्रियता को बढ़ाने में चेस्ट फिजियोथेरेपी एक कारगर उपाय है। निमोनिया जैसी स्थिति से लेकर कोरोना के गंभीर मरीजों के लिए चेस्ट फिजियोथेरेपी बेहद उपयोगी है। इसकी मदद से सांस लेने की क्षमता में सुधार करने में मदद मिलती है। एक ट्रीटमेंट सेशन 20 से 40 मिनट तक चलता है। इस थेरेपी की मदद से फेफड़ों में जमा बलगम और कफ़ कम किया जा सकता है। इसे एक बार समझा देने के बाद मरीज खुद कर सकता है।

चेस्ट फिजियोथेरेपी के यह हैं फायदे

जिला अस्पताल के एनसीडी सेल के फिजियोथैरेपिस्ट बलवन्त त्रिपाठी बताते है कि इसमें पॉश्च्युरल ड्रेनेज, चेस्ट परक्यूजन, चेस्ट वाइब्रेशन, टर्निंग, डीप ब्रीदिग एक्सरसाइज जैसी कई थेरेपी शामिल होती हैं। इसकी मदद से फेफड़ों में जमा बलगम बाहर निकालने में मदद मिलती है। मरीज को अलग-अलग पोश्चर में लेटा कर गहरी सांसें लेने व छोड़ने को बोला जाता है। मरीज की पीठ, छाती व पसलियों के बीच में थप-थपाकर और कंपन उत्पन्न कर फेफड़ों में जमे बलगम को बाहर निकल जाता है।

चेस्ट फिजियोथैरेपी का तरीका

डॉ चौधरी बताते हैं कि चेस्ट फिजियोथैरेपी के तीन चरण होते हैं। पहला चरण कपिंग और वाइब्रेशन का होता है। यह दो से तीन मिनट का होता है। इसे लेटकर या आराम से कोई सहारा लेकर किया जाता है। चेस्ट पर वाइब्रेशन देने के लिए कुछ माइल्ड वाइब्रेशन डिवाइज का सहारा लिया जाता है जैसे ट्रिमर। दूसरे चरण में गहरी सांस लेने की एक्सरसाइज होती है जो तीन से चार मिनट की होती है। पहले चरण के बाद आराम से और गहरी सांस से बलगम को इकट्ठा करने में मदद मिलती है। इस थैरेपी का अन्तिम चरण टफिंग और हफिंग टेक्निक्स होती है जो पांच से छह मिनट तक चलती है। इससे फेफड़ों से बलगम को बाहर निकालने में मदद मिलती है। फेफड़ों से बलगम को बाहर निकालने के लिए पोस्टुरल ड्रेनेज होता है। इसे नियामित समय अंतराल के बाद लेटने जैसे पेट के बल लेटना, शरीर के दोनों साइड लेटना की मुद्रा में किया जाता है। इसे बाकी स्ट्रेप्स के दो से तीन चक्र करने के बाद एक बार किया जाता है।

चेस्ट फिजियोथैरेपी के जरुरी तथ्य

  • चेस्ट फिजियोथेरेपी के लिए खाने से पहले का समय या खाने के डेढ़ से दो घंटे का वक्त सबसे अनुकूल है। इस समय में थेरेपी करने से उल्टी होने का खतरा नहीं होता।
  • इस थेरेपी को एक सीरीज की तरह साइकल बनाकर करना चाहिए।
  • फेफड़ों को बेहतर बनाने के लिए एक पीरियड में थेरेपी की दो से तीन चक्र करने की जरूरत पड़ती है।
  • भांप के साथ इस थेरेपी को करने से बलगम और स्राव को कम किया जा सकता है।