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बोर्ड परीक्षा में पर्चा लीक का मामला: अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए डीएम बलिया ने निर्दोष पत्रकारों पर पर फोडा अपराध का ठीकरा

                         समूचे प्रकरण मे प्रदेश की योगी सरकार मूक दर्शक
कबीर बस्ती न्यूज:

लखनऊ: बोर्ड परीक्षा में नकल से पर्चा लीक जैसे कोढ़ के इलाज के बजाय उसे ढकने की प्रशासन की बदनीयती से पूर्वांचल के नकल माफिया के हौसले बुलंद हैं। बलिया में पर्चा लीक का मामला उजागर करने वाले पत्रकारों पर कार्रवाई से प्रशासन पर सवाल उठ रहे हैं। प्रशासन के पास अभी तक गिरफ्तार पत्रकारों के खिलाफ कोई सुबूत नहीं हैं। कहते है कि खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे जैसी कहावत जिला प्रशासन बलिया पर सटीक बैठ रहा है। क्योंकि डीएम ने अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए निर्दोष पत्रकारों को सूली पर चढा कर अपने भ्रष्टाचारी मानसिकता को उजागर कर दिया। नकल माफियाओं के बचाव मे उतरे बलिया के जिलाधिकारी ने अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाते हुए अपने अपराध का ठीकरा पत्रकारों के सिर पर फोड दिया। समूचे प्रकरण मे प्रदेश की योगी सरकार मूक दर्शक है।

दरअसल, 29 मार्च को हाईस्कूल की संस्कृत की परीक्षा थी। 28 मार्च की रात को ही बलिया में प्रश्नपत्र व मिलती-जुलती हल की हुई कॉपी वायरल हो गई। 29 मार्च की सुबह छह बजे पत्रकार अजीत ओझा ने इसे तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक को भेजकर जांच की बात कही। चार घंटे तक कोई जवाब नहीं आया। दस बजे डीएम इंद्रविक्रम सिंह ने फोन कर प्रश्नपत्र अपने व्हाट्सएप पर मांगा। पत्रकार ने वायरल पर्चा उन्हें भी भेज दिया। 
फिर भी, वायरल प्रश्नपत्र से मिलते-जुलते पेपर से ही परीक्षा करवा ली गई। इसी बीच, 29 मार्च की रात अंग्रेजी का पेपर भी वायरल हो गया। इसकी खबर अखबार में छपी भी। 30 मार्च को सुबह करीब साढ़े नौ बजे डीएम ने फोन कर अंग्रेजी का वायरल पेपर मांगा, तो पत्रकार ने उन्हें व्हाट्सएप कर दिया। आश्चर्यजनक रूप से उनके मांगे जाने पर ही भेजे पेपर को वायरल करना बताते हुए पत्रकार अजीत ओझा व अन्य पर केस दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जबकि, पूरे मामले में प्रशासन की मदद की गई। इसके सुबूत भी मौजूद हैं।

प्रशासन की मदद अपराध कैसे?
प्रशासन ने अपनी गर्दन बचाने के लिए ऐसी कहानी गढ़ी कि नकल माफिया की करतूत उजागर करने वालों को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। सवाल है, अगर पत्रकार नकल माफिया से मिले होते, तो प्रशासन को पर्चा लीक होने की सूचना क्यों देते? या प्रशासन को सूचना देना ही अपराध है?

पेपर लीक मामला : पत्रकारों को जेल भेजने पर बिफरे अधिवक्ता

यूपी बोर्ड परीक्षा में इंटरमीडिएट का अंग्रेजी पेपर होने के मामले में पत्रकारों को फंसाने के विरोध में अधिवक्ताओं का एक प्रतिनिधिमंडल शनिवार को डीएम कार्यालय पहुंचा। जिलाधिकारी से मुलाकात न होने पर राज्यपाल के नाम ज्ञापन उनके प्रतिनिधि को सौंपा। इसमें जिला प्रशासन पर उदासीनता व घोर लापरवाही का आरोप लगाते हुए पूरे प्रकरण में डीएम बलिया को दोषी ठहराया है।

वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज राय हंस ने कहा कि बलिया सहित कुल 24 जनपदों में अंग्रेजी विषय की प्रश्न पुस्तिका परीक्षा शुरू होने से पूर्व सोशल मीडिया पर वायरल होने की सूचना प्रसारित हुई थी। इसके बावजूद जिलाधिकारी बलिया द्वारा घोर उदासीनता व लापरवाही का परिचय दिया गया। परीक्षा निरस्त करने की घोषणा वायरल हुए पेपर से मिलान किए बिना लगभग दो घंटे पहले ही कैसे कर दी गई? इससे स्पष्ट है कि डीएम ने अंग्रेजी का पेपर समयपूर्व ही सीलबंद लिफाफे को खोल कर देखा और इसकी गोपनीयता भंग की। अधिवक्ताओं ने मांग की है कि पत्रकारों पर दर्ज मुकदमा वापस लिया जाए और गोपनीयता भंग करने के आरोप में डीएम को निलंबित कर उन पर मुकदमा दर्ज कराया जाए।

डीएम पर कार्रवाई की मांग को लेकर राज्यपाल को ज्ञापन भेजा
पेपर लीक मामले में पत्रकारों पर दर्ज फर्जी मुकदमा वापस लेने की मांग को लेकर छात्र नेताओं ने शनिवार को मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा। सामाजिक कार्यकर्ता रिपुंजय रमण पाठक ने कहा कि पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। पत्रकारों का मुख्य कार्य जनहित में खबरों को प्रकाशित करना है। जिला प्रशासन ने बिना जांच किए ही पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया है।

पत्रकारों को जेल भेजना, लोकतंत्र की हत्या
अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति के जिलाध्यक्ष शैलेश सिंह ने घटना में पत्रकारों को ही दोषी ठहरा कर जेल भेज देने को लोकतंत्र की हत्या बताया। उन्होंने कहा है कि अगर समाज का कोई प्रहरी भ्रष्ट व्यवस्था को उजागर करने की हिम्मत जुटा पाता है तो जिला प्रशासन प्रोत्साहित करने की बजाय उसे ही जेल में डाल दे, यह सर्वथा निंदनीय है।