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आत्महत्या का ख्याल आए तो मनकक्ष को फोन लगाएं, स्थापना से लेकर अब तक 35 लोगों के जीवन की की गयी रक्षा

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (10 सितम्बर 2022) पर विशेष
10 अक्टूबर 2019 से जिला अस्पताल के कक्ष संख्या 50 में क्रियाशील है मनकक्ष

कबीर बस्ती न्यूजः

गोरखपुर: ‘‘कहेहू ते कछु दुख घटि होई, काहि कहौं यह जान न कोई’ यानि मन का दुख कह डालने से भी कुछ कम हो जाता है, पर कहूं किससे, यह दुख कोई नहीं जानता ? इन पंक्तियों के भावों को समझते हुए लोगों के मन के दर्द को दूर करने का कार्य कर रहा है जिला अस्पताल में क्रियाशील मनकक्ष । मनकक्ष के प्रयासों से केवल लोगों का मानसिक तनाव दूर हो रहा है बल्कि जीवन की रक्षा भी हो रही है । 10 अक्टूबर 2019 को स्थापित होने से लेकर अब तक मनकक्ष ने 35 ऐसे लोगों के जीवन की रक्षा की है जो आत्महत्या के कगार पर थे और इनमें से कुछ ने तो कई बार आत्महत्या के प्रयास भी किये थे ।

देवरिया जिले के एक गांव के रहने वाले 52 वर्षीय सुदामा (काल्पनिक नाम) की बेटी सविता (20) (काल्पनिक नाम) ने 02 जुलाई 2019 को पहली बार अचानक आत्महत्या का प्रयास किया । सुदामा बताते हैं कि उनके सगे भाई ने उनके परिवार को धोखा दिया था जिसके कारण उनके पूरे परिवार को सदमा लगा था । सबसे गहरा प्रभाव मझली बेटी सविता पर पड़ा था। वह अपने जीवन को खत्म करना चाहती थी । बच्ची को लेकर वह जिला अस्पताल देवरिया गये लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ । घर आने के बाद बच्ची की निगरानी की जाने लगी । एक दिन बच्ची ने छत से छलांग लगा दी और उसके पैर टूट गये । अस्पताल में इलाज कराया गया। वह इतने गहरे अवसाद में चली गयी थी कि स्वास्थ्य की स्थिति भी बिगड़ने लगी। कुछ भी खाती थी तो पचता नहीं था । जब थोड़ा ठीक हो जाती तो आत्महत्या का प्रयास करती। दो वर्षों में तकरीबन पांच बार उसने गले में दुपट्टा डालकर आत्महत्या का प्रयास किया । सरकारी और निजी अस्पताल मिलाकर करीब नौ लाख रुपये इलाज में खर्च हो गये लेकिन बच्ची ठीक नहीं हुई।

सुदामा बताते हैं कि उनके एक परिचित ने सलाह दिया कि वह बच्ची की मानसिक दिव्यांगता का प्रमाण पत्र बनवा लें ताकि अनहोनी की दशा में उन्हें और बाकी परिवार को कोई वैधानिक दिक्कत न हो । वह प्रमाण पत्र बनवाने गोरखपुर आए जहां जिला अस्पताल के मानसिक रोग के चिकित्सक डॉ अमित शाही के बारे में उन्हें जानकारी मिली। जिला अस्पताल पहुंच कर डॉ शाही को दिखाया तो उन्होंने दवा के अलावा मनकक्ष में जाने का परामर्श दिया । 22 जून 2022 को सविता पहली बार मनकक्ष में आईं। दवा के साथ लगातार उनकी काउंसिलिंग की गयी और अब वह पूरी तरह से ठीक हैं । सविता को तनाव व अवसाद मैनेज करने के तरीके सिखाए गए। वह बताती हैं कि उन्हें जीवन बेकार लगने लगा था लेकिन अब जीने की इच्छा है। मनकक्ष ने उनके मन में जीवन जीने की उम्मीद जगा दी है।

2850 लोगों को मिला परामर्श
मनकक्ष के नैदानिक मनोवैज्ञानिक रमेंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि स्थापना से लेकर अब तक मनकक्ष के हेल्पलाइन नंबर 9336929266 पर और कक्ष संख्या 50 में 2850 लोगों के मन की बातें सुनी गयीं और उनको सही सलाह दी गयी । आत्महत्या के मामलों में ज्यादातर लोग 18 से 40 आयुवर्ग के होते हैं और वह कई प्रकार के तनावों से जूझ रहे होते हैं । किसी को पढ़ाई में असफलता से सदमा पहुंचा होता है तो किसी को व्यापार में क्षति से। अलग अलग कारणों से लोग अवसाद में चले जाते हैं और कई बार आत्महत्या का निर्णय ले लेते हैं । ऐसे लोगों के मन की बातें सुनकर परामर्श के साथ साथ आवश्यकतानुसार दवा भी दी जाती है ।

‘‘कार्रवाई के माध्यम से आशा पैदा करना’’ है थीम

मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ अमित शाही ने बताया कि वर्ष 2003 से प्रत्येक वर्ष 10 सितम्बर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है । इस साल की थीम ‘‘कार्रवाई के माध्यम से आशा पैदा करना’’ (क्रियेटिंग होप थ्रू एक्शन) है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2020 में भारत में 1.53 लाख लोगों ने आत्महत्या किया, जबकि वर्ष 2021 में यह आंकड़ा बढ़ कर 1.64 लाख हो गया । वर्ष 2021 में सबसे ज्यादा आत्महत्या हुए हैं । आत्मघाती निर्णय लेने वालों के मन की बात अगर सुनी जाए और उन्हें समय रहते सही परामर्श दिया जाए तो इन घटनाओं को रोका जा सकता है । इस दिशा में मनकक्ष की अहम भूमिका है।

जागरूक किये गये लोग

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के एक दिन पूर्व जिला अस्पताल में लोगों को इस संबंध में पंपलेट बांट कर जागरूक किया गया । लोगों को मनकक्ष के नंबर के बारे में भी जानकारी दी गयी । इस अवसर पर एसीएमओ डॉ एके चौधरी, मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ अमित शाही, नैदानिक मनोवैज्ञानिक रमेंद्र त्रिपाठी, साइकिट्रिक सोशल वर्कर संजीव, साइकिट्रिक नर्स विष्णु शर्मा और कम्युनिटी नर्स प्रदीप वर्मा ने लोगों को जागरूक किया ।