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श्रीराम फाइलेरिया पेशेंट सपोर्ट ग्रुप ने पिपराईच के उसका गांव में मनाया एनटीडी दिवस

कुष्ठ, कालाजार और फाइलेरिया के प्रति किया जागरूक

ग्रुप के सदस्यों को एमएडीपी प्रशिक्षण के साथ किट भी प्रदान की गयी

जूनियर हाईस्कूल उसका में हुए आयोजन में स्कूली बच्चे,शिक्षक और ग्रामीण रहे उपस्थित

कबीर बस्ती न्यूज:
गोरखपुर। पिपराईच ब्लॉक के उसका गांव स्थितजूनियर हाईस्कूल में सोमवार को  नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज (एनटीडी) दिवस का आयोजन श्रीराम फाइलेरिया पेशेंट सपोर्ट ग्रुप ने किया । इस मौके पर उपस्थित स्कूली बच्चों, शिक्षकों और ग्रामीणों को कुष्ठ, कालाजार एवं फाइलेरिया जैसीउपेक्षित बीमारियों के बारे में जागरूक किया गया । इसके अलावा ग्रुप के सदस्यों को रुग्णता प्रबन्धन एवं दिव्यांगता निवारण (एमएमडीपी) पर प्रशिक्षण के साथ किट भी प्रदान की गयी  ।
इस मौके पर मलेरिया इंस्पेक्टर पूजा गुप्ता ने बताया कि कालाजार  बीमारी सैंड फ्लाई यानि बालू मक्खी के काटने से होती है । इसमें दो सप्ताह तक बुखार आता है। पेट फूल जाता है और हाथ -पैर पतला हो जाता है। समय से पहचान होने पर 24 घंटे के भीतर बुखार वाले कालाजार का इलाज हो जाता है वहीं चमड़ी वाले कालाजार के लिए करीब तीन माह दवा चलती है । जिले में कालाजार के सक्रिय मरीज तो नहीं हैं लेकिन पड़ोसी जिले कुशीनगर और देवरिया में इसके मरीजों को देखते हुए इलाज की व्यवस्था जिला स्तर पर उपलब्ध है । इसी प्रकार फाइलेरिया बीमारी क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होती है । इस बीमारी से हाथीपांव और हाइड्रोसील की दिक्कत होती है। हाथीपांव की स्थिति में एमएमडीपी किट से बीमारी की देखभाल करने से थोड़ा आराम मिल जाता है, वहीं हाइड्रोसील की सर्जरी की सुविधा भी विभाग द्वारा दी जाती है । फाइलेरिया से बचाव के लिए सभी लोगों को और इसके मरीजों को आराम के लिए साल भर में एक बार मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए राउंड) कार्यक्रम के दौरान आशा कार्यकर्ता के सामने दवा का सेवन अवश्य करना चाहिए । दो साल से कम उम्र के बच्चों,गर्भवती और गंभीर तौर पर बीमार लोगों को छोड़ कर सभी को इस दवा का सेवन लगातार पांच साल तक करना है।
नाम मेडिकल एसिस्टेंट (एनएमए) एचएस गुप्ता ने उपस्थित लोगों को कुष्ठ निवारण में सहयोग की शपथ दिलाई। उन्होंने बताया कि चमड़ी के रंग से हल्के रंग का सुन्न दाग धब्बा जिसमें पसीना न आता हो, कुष्ठ रोग हो सकता है । हाथ पैर के नसों में मोटापन, सूजन, झनझनाहट, तलवों में सुनापन, पूरी क्षमता से काम न कर पाना, चेहरा, शरीर व कान पर गांठ, हाथ, पैर और उंगुली में टेढ़ापन कुष्ठ रोग के लक्षण हैं। ऐसे लक्षण दिखने पर तुरंत आशा कार्यकर्ता और सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ) से सम्पर्क कर जांच व इलाज कराना चाहिए। पासी बेलिसाई (पीबी) कुष्ठ रोग होने पर मरीज छह महीने की दवा में ठीक हो जाता है जबकि मल्टी बेसिलाई(एमबी) कुष्ठ रोग होने पर साल भर तक दवा चलती है । कुष्ठ का सम्पूर्ण इलाज उपलब्ध है ।
उसका के ग्राम प्रधान दीपक कश्यप (32) ने बताया कि गांव में सपोर्ट ग्रुप द्वारा पहली बार स्कूल पर कुष्ठ, कालाजार और फाइलेरिया से सम्बन्धित कार्यक्रम का एक साथ आयोजन किया गया । इस आयोजन के जरिये ग्रामीणों और स्कूली बच्चों को विस्तार से जानकारी मिल सकी । स्वास्थ्य विभाग नेआठ फाइलेरिया मरीजों को एमएमडीपी किट भी प्रदान की , जिसमें बाल्टी, मग, तौलिया, टब, साबुन और क्रीम शामिल हैं। आयोजन में सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) संस्था ने विशेष सहयोग किया ।
रोग प्रबन्धन के बारे में दी गयी जानकारी
श्रीराम फाइलेरिया पेशेंट सपोर्ट ग्रुप की सदस्य सुधा (45) ने मलेरिया इंस्पेक्टर पूजा के साथ मिल कर बाकी सदस्यों को एमएमडीपी का डेमो करके दिखाया । मरीजों को बताया गया कि हाथीपांव प्रबंधन से इसके पहले व दूसरे चरण में सूजन को अत्यंत कम किया जा सकता है । ऐसा करने से तीसरे, चौथे और पांचवे स्टेज में भी सूजन थोड़ा  कम हो जाता है और आराम मिलता है। फाइलेरिया प्रभावित अंगों की देखभाल से चोट व घाव से भी बचाव होता है । हाथीपांव के मरीज को एमएमडीपी किट में मिले टब में अपना प्रभावित अंग रखना होता है और फिर मग से धीरे धीरे पानी डालकर अंग को भिगोना है। पानी न तो ठंडा हो और न ही गरम हो। साबुन को प्रभावित अंग पर सीधे नहीं लगाना है । साबुन को हाथों में लेकर झाग बना लेना है और फिर उसी झाग को प्रभावित अंग पर लगाना है और फिर अंग को धुलना है । इसके बाद साफ कॉटन के तौलिये से बिना रगड़े हल्के हाथ से अंग को साफ करना है। अगर प्रभावित अंग कहीं कटा है या इंफेक्टेड है तो वहां पर क्रीम भी लगाना है । यह कार्य रोजाना करने से हाथीपांव प्रभावित अंग सुरक्षित रहते हैं।