वाह रे… संवेदनशील जिला प्रशासन ….अब तीमारदारों पर बरस रहीं हैं लाठियां
- कोई मरे या जिये, व्यवस्था में सुधार करने को जिम्मेदार कतई तैयार नही
बस्ती। जनपद में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। जिला ओपेक चिकित्सालय कैली मेडिकल कालेज में मरीजों को भर्ती करने में लोगों का पसीना छूट रहा है। न सत्ता में पकड़ काम आ रही है और न ही मरीजों की गंभीरता कोई मायने रखती है। सब राम भरोसे है, कोई मरे या जिये, व्यवस्था में सुधार करने को जिम्मेदार कतई तैयार नही हैं।
कभी भाजपा नेता व्यवस्था के चाक चौबंद होने का दावा करते हैं, कभी अस्पताल का प्रबंध तंत्र तो कभी जिले के प्रशासनिक अधिकारी। लेकिन दावों में कितना दम है यह देखना हो तो कैली अस्पताल चले जाइये। आपको पता चल जायेगा कि आम जन के जीने मरने का इन जिम्मेदारों पर कितना फर्क पड़ता है। सोमवार रात करीब 11 बजे फोन करके एवं वरिष्ठ पत्रकार रहे संजय द्विवेदी ने जो हकीकत बयां किया वह सरकारी दावों की पोल खोलने के लिये काफी है। संजय शिक्षक होने के साथ साथ अच्छे समाजसेवी और कलमकार हैं। सत्ता में भी उनकी अच्छी पहचान और पकड़ है। मंडल में कोई ऐसा रसूखदार नही जो उनके व्यक्तित्व से परिचित न हो।
हैरानी की बात ये है कि उन्हे कोविड पाजिटिव अपनी चाची और उनके बेटे को कैली अस्पताल में एडमिट कराने के लिये लोहे का चना चबाना पड़ा। शाम 6 बजे से 11 बजे तक शासन प्रशासन, सांसद, मेडिकल कालेज के प्रिंसिपिल, जिलाधिकारी सहित अनेक रसूखदारों को फोन करते रहे लेकिन अपने मरीज को बेड और आक्सीजन नही दिला सके। हां इतना जरूर हुआ कि अस्पताल में तैनात फोर्स ने मरीजों और तीमारदारों पर दो बार पीटा और कैम्पस से बाहर खदेड़ दिया। संजय रूवयं बाहर हैं। अस्पताल में मौजूद संजय द्विवेदी के बड़े भाई ने भी उपरोक्त हालातों की पुष्टि की। सवाल ये है कि खास आदमी के साथ ऐसा हो रहा है तो आम आदमी की जगह कहां है उसे खुद समझ लेना चाहिये।