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किसानों के संघर्ष, समर्पण, धैर्य और उनकी शहादत का ही परिणाम है कि अंहकारी सरकार का गुरुर टूटा-ऐश्वर्य राज सिंह

कबीर बस्ती न्यूज,बस्ती।उ0प्र0।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा तीनों काले कृषि कानूनों को वापिस लेने की घोषणा पर राष्ट्रीय लोकदल के प्रवक्ता ऐश्वर्य राज सिंह ने कहा कि 700 से ज्यादा किसानों की जान लेने और सालभर तक उन्हें धूप, बरसात और सर्दी-गर्मी में खुले आसमान के नीचे तड़पाकर सरकार को अब समझ आया कि कृषि कानून गलत थे और किसान सही। ये किसानों के संघर्ष, समर्पण, धैर्य और उनकी शहादत का ही परिणाम है कि अंहकारी सरकार का गुरुर टूटा और उसने देश के करोड़ों किसानों के सामने झुकते हुए तीनों काले कृषि कानूनों को वापिस लेने पर मजबूर होना पड़ा। राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह ने इस विषय पर ट्वीट करते हुए कहा की ” किसान की जीत हम सबकी है इस देश की जीत है!”
 यह जीत देश के किसानों की जीत है, जो हर कदम तानाशाही सरकार के खिलाफ डटकर खड़े रहे।
सरकार की बेरुखी और दमन के आगे जब आंदोलन धीमा पड़ने लगा तब स्व. चौधरी अजित सिंह ने लगातार किसानों का हौसला बढ़ाया उन्हें ताकत दी। राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह ने भी किसान आंदोलन के दौरान 60 से ज्यादा किसान पंचायतें कर किसानों की आवाज को बुलंद किया। अन्नदाताओं की यह यह लड़ाई जारी रही और अंतत: किसानों को जीत मिली। लेकिन इन काले कानूनों को वापिस लेने से ही भाजपा सरकार के पाप धुलने वाले नहीं हैं। किसान नहीं भूल सकता कि कैसे एक अहंकारी सरकार ने सालभर तक उन्हें खुले आसमान के नीचे सड़को पर बैठने को मजबूर किया।
किस तरह भाजपा के वरिष्ठ नेताओं,मंत्रियों, मुख्यमंत्री और नेताओं ने आंदोलन करने वाले किसानों को आतंकवादी, खालिस्तानी और देशद्रोही तक कहकर बदनाम किया। अभी हाल ही में किस प्रकार लखीमपुर में किसानों को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के बेटे ने अपनी गाड़ी तले कुचल डाला,देश अभी भूला नही है
 अब उपचुनावों में हार, जनआक्रोश और देशभर में किसानों की नाराजगी को देखते हुए आखिरकार प्रधानमंत्री को कानून वापस लेने का फैसला करना पड़ा। बड़ा सवाल ये है कि जो भाजपा और उसके समर्थक कल तक इन कानूनों को सही बताते नहीं थकते थे तो फिर आज उन्हें वापिस करने को मजबूर क्यों होना पड़ा। ये कानून किसान विरोधी थे, यह बात भाजपा को अब समझ आई जब 700 किसानों की जान चली गई। अपने मुद्दों को लेकर किसानों की लड़ाई जारी रहेगी।