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ओमिक्रॉन के संक्रमण को रोकने और इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए शोध

कबीर बस्ती न्यूजः

ओमिक्रॉन के संक्रमण को रोकने और शरीर में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए वैश्विक स्तर पर शोध किए जा रहे हैं। कई वैज्ञानिकों का मानना है कि मौजूदा वैक्सीन्स और बूस्टर डोज इस वैरिएंट के खिलाफ ज्यादा असरदार नहीं है। इस परेशानी से निपटने के लिए दुनिया भर की फार्मा कंपनियां ऐसी वैक्सीन बनाने में लगी हुई हैं, जो खास तौर पर ओमिक्रॉन को अपना टारगेट बनाए। हालांकि अमेरिका में बंदरों पर हुई एक नई रिसर्च बताती है कि इस वैरिएंट के खिलाफ मौजूदा बूस्टर डोज ही काफी हैं।

बंदरों को दी गई वैक्सीन

रिसर्च में ऐसे बंदरों को शामिल किया गया, जिन्हें मॉर्डना वैक्सीन की दोनों डोज मिल चुकी थीं। इस शोध को अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इनफेक्शियस डिसीज के वैज्ञानिकों ने किया है। इसमें कुछ ऐसे बंदरों को शामिल किया गया, जिन्हें मॉर्डना वैक्सीन की दोनों डोज मिल चुकी थीं। बंदरों को दो ग्रुप्स में बांटा गया। 9 महीने बाद पहले ग्रुप को मॉर्डना वैक्सीन का ही बूस्टर डोज दिया गया, वहीं दूसरे ग्रुप को ओमिक्रॉन को टारगेट करने वाली खास वैक्सीन दी गई।

दोनों तरह की वैक्सीन्स ओमिक्रॉन के खिलाफ असरदार

वैज्ञानिकों ने पाया कि बंदरों में दोनों तरह की वैक्सीन्स ने कोरोना के सभी वैरिएंट्स के खिलाफ एक जैसी इम्यूनिटी ही विकसित की। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में स्टडी में शामिल वैज्ञानिक डेनियल डुएक ने कहा, “ये बहुत ही अच्छी खबर है।” उनके अनुसार, इस रिसर्च से ये साबित होता है कि हमें ओमिक्रॉन के लिए अलग से वैक्सीन बनाने की कोई जरूरत नहीं है।

प्रोफेसर जॉन मूरे कहते हैं कि ऐसी रिसर्च को बंदरों पर करने का एक बहुत बड़ा फायदा है। इसके जरिए हम बंदरों को वैक्सीन लगाकर, उनकी इम्यूनिटी बढ़ाकर, उन्हें वायरस से दोबारा संक्रमित कर सकते हैं और एक बार फिर से उनकी इम्यूनिटी जांच सकते हैं। मूरे के मुताबिक, इस रिसर्च के बाद भी हमें इंसानों के डेटा का इंतजार करना चाहिए। मूरे इस रिसर्च का हिस्सा नहीं थे।

दुनिया वैरिएंट स्पेसिफिक वैक्सीन बनाने में जुटी

भारत में अब तक 1 करोड़ 48 लाख से ज्यादा लोगों को बूस्टर डोज दी जा चुकी है।

दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों के पास ही वैरिएंट स्पेसिफिक वैक्सीन्स की उपलब्धता है। पिछले महीने फाइजर ने कहा था कि ओमिक्रॉन के खिलाफ उसकी वैक्सीन मार्च तक तैयार हो जाएगी। इसके अलावा, मॉडर्ना और एस्ट्राजेनेका जैसी कंपनियां भी वैरिएंट स्पेसिफिक वैक्सीन बनाने में लगी हुई हैं। भारत की जिनोवा बायोफार्मास्युटिकल्स ने भी खास तौर पर ओमिक्रॉन वैरिएंट से होने वाले संक्रमण को ध्यान में रखते हुए अपनी वैक्सीन डेवलप की है।

भारत में क्या है बूस्टर डोज की स्थिति?

देश में 10 जनवरी से हेल्थकेयर, फ्रंटलाइन वर्कर्स और पहले से ही बीमारियों से जूझ रहे वरिष्ठ नागरिकों को वैक्सीन की तीसरी खुराक को ‘प्रीकॉशनरी डोज’ के तौर पर देना शुरू कर दिया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, रविवार तक 1 करोड़ 48 लाख से ज्यादा लोगों को तीसरी डोज दी जा चुकी है।